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Wednesday, April 24, 2024
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uniform civil code : क्या है समान नागरिक संहिता, आम जनता के लिए इसके फायदे एवं नुकसान, जानें

आजकल एक मुद्दा बहुत सामने आ रहा है, समान नागरिक संहिता का जो देश के बिभिन्न भागो में चर्चा का विषय बना हुआ है। आज हम बात करेंगे, इसके बारे में और समझेंगे की आखिर यह है, क्या और आम जनता के लिए इसके क्या फायदे एवं नुकसान क्या है।

आज उत्तराखण्ड सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया गया कि राज्य में समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाई जाएगी। समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में उत्तराखंड सरकार आगे आई है।

समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 के अनुसार भारत के समस्त नागरिकों के लिये एक समान नियम एवं कानून होने चाहिए। भारतीय गणराज्य के पहले प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू, उनके समर्थक और महिला सदस्य चाहते थे कि समान नागरिक संहिता लागू हो।

Uttarakhand Cabinet: समान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन के लिए विशेषज्ञों की समिति बनाने का निर्णय

इसका अर्थ एक धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) कानून भी होता है, जो सभी धर्म के लोगों के लिये समान रूप से लागू होता है। दूसरे शब्दों में, अलग-अलग धर्मों के लिये अलग-अलग सिविल कानून न होना ही ‘समान नागरिक संहिता’ की मूल भावना है। फिर भले ही वो किसी भी धर्म या जाति से ताल्लुक क्यों न रखता हो।

आज देश में अलग-अलग मजहबों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। देश में समान नागरिक संहिता के लागू होने से हर मजहब के लिए एक जैसा कानून आ जाएगा। यानी मुस्लमानों को भी तीन शादियां करने और पत्नी को महज तीन बार तलाक बोले देने से रिश्ता खत्म कर देने वाली परंपरा खत्म हो जाएगी।

जैसा की सब जानते है की भारत में अधिकतर व्यक्तिगत कानून धर्म के आधार पर बनाये गए हैं।हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के व्यक्तिगत कानून हिंदू विधि से संचालित किये आते हैं, वहीं मुस्लिम तथा ईसाई धर्मों के अपने अलग व्यक्तिगत कानून हैं। मुस्लिमों का कानून शरीयत पर आधारित है, जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानून भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानून पर आधारित हैं।

इन क़ानूनों को सार्वजनिक कानून के नाम से जाना जाता है, और इसके अंतर्गत विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और संरक्षण जैसे विषयों से संबंधित क़ानूनों को शामिल किया गया है। आज विश्व के अधिकतर आधुनिक देशों में ऐसे कानून लागू हैं।

यह किसी भी धर्म या जाति के सभी निजी क़ानूनों से ऊपर होता है। भारत देश में इसके सुचारु रूप से लागू होने से महिलाओं को अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे। समान नागरिक संहिता का उद्देश्य हर धर्म के पर्सनल लॉ में एकरूपता लाना है। इसके तहत हर धर्म के क़ानूनों में सुधार और एकरूपता लाने पर काम होगा, इसका अर्थ एक निष्पक्ष कानून है, जिसका किसी एक धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है।

हिन्दू विवाह अधिनियम 

यह कानून भारत की संसद द्वारा सन् 1955 में पारित एक कानून है। देश में इसके विरोध के कारण इस बिल को कई भागों में बांट दिया गया। इसी कालावधि में तीन अन्य महत्वपूर्ण कानून पारित हुए: हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम सन 1955 में लागू किया गया, हिन्दू अल्पसंख्यक तथा अभिभावक अधिनियम 1956 में लागू किया गया और हिन्दू एडॉप्शन और भरणपोषण अधिनियम 1956 में लागू किया गया।

ये सभी नियम हिंदुओं के वैधिक परम्पराओं को आधुनिक बनाने के उद्देश्य से लागू किए गये थे। इस कानून ने महिलाओं को सीधे तौर पर सशक्त बनाया। इनके तहत महिलाओं को पैतृक और पति की संपत्ति में अधिकार मिलता है। इसके अलावा अलग-अलग जातियों के लोगों को एक-दूसरे से शादी करने का अधिकार है, लेकिन कोई व्यक्ति एक शादी के रहते दूसरी शादी नहीं कर सकता है।

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड 

देश के मुस्लिमों के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड है जो इस्लामी कानून संहिता के आवेदन प्रदान करता है। इसके अनुसार शादीशुदा मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को महज तीन बार तलाक कहकर तलाक दे सकता है। हालांकि मुस्लिम पर्सनल कानून में तलाक के और भी तरीके दिए गए हैं, लेकिन उनमें से तीन बार तलाक भी एक प्रकार का तलाक माना गया है, जिसे कुछ मुस्लिम विद्वान शरीयत के खिलाफ भी बताते हैं।

इसकी वकालत करने वालों का कहना है, कि भारत में जिस तरह भारतीय दंड संहिता और ‘सीआरपीसी’ सब पर लागू हैं, उसी तरह समान नागरिक संहिता भी होनी चाहिए, चाहे वो हिन्दू हों या मुसलमान हों, या फिर किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों ना हों।

यह बहस इसलिए हो रही है, क्योंकि इस तरह के क़ानून के अभाव में महिलाओं के बीच आर्थिक और सामाजिक असुरक्षा बढ़ती जा रही है, हालांकि सरकार इस तरह का क़ानून बनाने की कोशिश तो कर रही हैं, लेकिन राजनीतिक मजबूरियों की वजह से अभी तक सरकार इसको लेकर कोई ठोस कदम नही उठा पाई।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता शब्द को प्रविष्ट किया गया। इससे यह स्पष्ट होता है, कि भारतीय संविधान का लक्ष्य भारत के समस्त नागरिकों के साथ धार्मिक आधार पर सभी को एक सामान का दर्जा देना है, लेकिन वर्तमान समय तक समान नागरिक संहिता के लागू न हो पाने के कारण, भारत में एक बड़ा वर्ग अभी भी धार्मिक क़ानूनों की वजह से अपने अधिकारों से वंचित है।

अंग्रेजों द्वारा भारत में सभी धर्मों के लिए एक समान क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम बनाया गया। जो अभी भी लागू है। सामान नागरिक संहिता के बारे में 1840 में ऐसे प्रयास किए गए, परंतु हिंदुओं सहित अन्य धर्मावलंबियों के विरोध के बाद यह लागू नहीं हो सका। संविधान सभा में लंबी बहस के बाद अनुच्छेद 44 के माध्यम से सामान नागरिक संहिता बनाने के लिए दिशा-निर्देश दिया, जिसे पिछले 70 वर्षों में लागू करने में सभी सरकारें असफल रही हैं।

कट्टरपंथियों के विरोध के बावजूद 1955-56 में हिंदुओं के लिए संपत्ति, विवाह एवं उत्तराधिकार के कानून पारित हो गए। दूसरी ओर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने साल 1937 में निकाह, तलाक और उत्तराधिकार पर जो पारिवारिक कानून बनाए थे, वह आज भी अमल में आ रहे हैं, जिन्हें बदलने के लिए मुस्लिम महिलाएं एवं प्रगतिशील लोग प्रयासरत है। सिविल लॉ में विभिन्न धर्मों की अलग परंपरा हैं, परंतु सर्वाधिक विवाद शादी, तलाक, मेंटेनेंस, उत्तराधिकार के कानून में भिन्नता से होता है। ईसाई दंपति को तलाक लेने से पहले 2 वर्ष तक अलग रहने का कानून है, जबकि हिंदुओं के लिए यह अवधि कुल एक वर्ष की है।

इसके विरोध में तीन मुस्लिम महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर कर, तीन तलाक और निकाह हलाला को गैर-इस्लामी और कुरान के खिलाफ बताते हुए इस पर पाबंदी की मांग की। इसके साथ ही समय समय पर लोग इसके लिए प्रयासरत रहते है –

  • सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में केन्द्र सरकार के विचार जानने की पहल कर चुका है।
  • संविधान के संस्थापकों ने राज्य के नीति निदेशक तत्व के माध्यम से इसको लागू करने की ज़िम्मेदारी बाद की सरकारों को हस्तांतरित कर दी थी।
  • अभी हाल ही में मंदिरों में महिलाओं को प्रवेश के अधिकार पर कोर्ट ने मोहर लगाई है। जिसका लाभ मुस्लिम महिलाओं को भी मिलने की बात हो रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी महिलाओं द्वारा बदलाव की मांग जायज़ है, जो संविधान के अनुच्छेद 14ए 15 एवं 21 के तहत उनका मूल अधिकार भी है। सामान नागरिक संहिता अगर लागू हुई तो एक नया कानून सभी धर्मों के लिए बनेगा।

समान नागरिक संहिता क्यों है जरूरी

सभी नागरिकों हेतु एक समान कानून होना चाहिये, लेकिन स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग अपने मूलभूत अधिकारों के लिये संघर्ष कर रहा है। इस प्रकार समान नागरिक संहिता का लागू न होना एक प्रकार से विधि के शासन और संविधान की प्रस्तावना का उल्लंघन है। वैसे तो इसके लागू होने से कई प्रकार के परिवर्तन देखने को मिलेंगे, जिनमे से कुछ इस प्रकार है –

अटूट रिश्ते के लिए 

हिंदुओं में शादी जन्मों का बंधन है जिसे तोड़ा नहीं जा सकता, साथ ही सम्मिलित हिन्दू परिवार की जो कल्पना है वो इस समाज की संस्कृति का हिस्सा है। कानून बनने से रिश्तों में मज़बूती आयेगी।

समानता के दर्जे के लिए 

आज जहाँ महिलाएँ पुरुष के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही है, वहीँ कई जगह आज भी महिलाओ को अच्छी निगाहों से नही देखा जाता। इसके लागू होने से महिला अपना आत्म सम्मान से जीवन यापन कर पायेगी और आधुनिक युग में महिलाओं को भी अधिकार होना चाहिए कि वो अपने फैसले ख़ुद ले सके।

हिन्दू महिलाएं भी चाहती हैं कि उनके पिता और पति की संपत्ति में उन्हें बराबर का हिस्सा मिले। यह बराबरी का मुद्दा है। हर समाज की महिलाएं बराबरी चाहती हैं, इसलिए समान नागरिक संहिता होनी चाहिए।

एक जैसे कानून के लिए 

आज विभिन्न धर्मों के अलग अलग कानून होने के कारण न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है, इसके लागू हो जाने से इस मुश्किल से निजात मिलेगी और न्यायालयों में वर्षों से पड़े मामलों के निपटारे जल्द होने शुरू होंगे|

देश के विकास के लिए 

सभी के लिए कानून में एक समानता से एकता को बढ़ावा मिलेगा और हर नागरिक समान होगा, समानता से देश विकास तेजी से होगा|

अन्य कारण

  • मुस्लिम महिलाओं की स्थिति बेहतर होगी।
  • हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से राजनीति में भी बदलाव आएगा या यू कहें कि वोट बैंक की राजनीति पर लगाम लगेगी
  • इसके तहत हर धर्म के लोगों को सिर्फ समान कानून के दायरे में लाया जाएगा, जिसमें शादी, तलाक, प्रॉपर्टी और गोद लेने जैसे मामले शामिल होंगे, ये लोगों को कानूनी आधार पर मजबूत बनाएगा|
  • समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में भी सुधार आएगा। कुछ धर्मों के पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकार सीमित हैं। इतना ही नहीं, महिलाओं का अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में भी एक समान नियम लागू होंगे।
  • व्यक्तिगत स्तर सुधरेगा।

भारत में कहाँ है लागू  

समान नागरिकता कानून भारत के संबंध में है, जहाँ भारत का संविधान राज्य के नीति निर्देशक तत्व में सभी नागरिकों को समान नागरिकता कानून सुनिश्चित करने के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करता है। वही अभी तक इसको लागू नही किया गया है।

गोवा एक मात्र ऐसा राज्य है, जहां यह लागू है। वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान और इजिप्ट जैसे कई देश इसे लागू कर चुके हैं।

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