डॉ महेश भट्ट
जलवायु परिवर्तन किस तरह से मनुष्यों पर क़हर बरपा सकता है ये दुनिया पिछले कुछ सालों से देख रही है। पाकिस्तान में बाढ़ से तबाही, यूरोप की सूखती नदियाँ, बढ़ती जंगलों की आग की घटनायें, पिघलते ग्लेशियर, सूखा, अनवरत बढ़ती प्राकृतिक आपदायें, और सबसे भयावह पिछले दो दशकों में नये रोगों का उद्भव, ये एक ट्रेलर है उस विभीषिका का जो जलवायु परिवर्तन के रूप में हमारे दरवाज़े पर खड़ी है। ये अब बिलकुल साफ़ हो रहा है कि पाकिस्तान की ये त्रासदी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा है।
आज जो पाकिस्तान में हो रहा है कल वो किसी भी देश में हो सकता है, जहां आज पाकिस्तान के लोग हैं कल हम भी हो सकते हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन 21वीं सदी की सच्चाई है और इस वैश्विक आपदा का सामना कोई भी देश चाहे वो कितना भी शक्तिशाली और धनी क्यों न हो अकेले कर ही नहीं सकता।
जलवायु परिवर्तन की वजह से वे लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं जो इसके लिए सबसे कम ज़िम्मेदार होते हैं, जैसे गरीब और साधनहीन लोग और समुदाय, क्योंकि ये लोग ए सी, कार, बड़े मकान, ज़्यादा पानी और बिजली की खपत, इन सब से दूर रहते हैं क्योंकि उनकी जेब ये अनुमति नहीं देती। अतः हम देख रहे हैं कि पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन की वजहों से सामाजिक विसंगतियाँ बड़ी तेज़ी से बढ़ रही हैं, क्योंकि साधनसम्पन्न वर्ग इनके दुष्प्रभावों से बचने में ज़्यादा सक्षम होते हैं और आपदाओं को अपने लिए अवसर में परिणित करने में भी सफल हो जाते हैं।
इस प्रकार से पूरे विश्व में असामानता बड़ी तेज़ी से बढ़ रही है, जहां सम्पूर्ण विश्व के लगभग 50% संसाधनों पर 1% अमीरों का क़ब्ज़ा हो चुका है, ऐसी स्थिति में विश्व की आधी आबादी की पहुँच बुनियादी ज़रूरतों जैसे भोजन, चिकित्सा, एवं शिक्षा से दिनप्रतिदिन मुश्किल होती जा रही है। वैश्विक स्तर पर विकसित, विकासशील, एवं गरीब देशों के स्तर पर बिल्कुल यही कहानी परिलक्षित हो रही है, जलवायु परिवर्तन के लिए जिन अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के तहत 2015 के बाद विकसित देशों को विकासशील और गरीब देशों की जिस तरह से मदद करनी चाहिए थी वे नहीं कर रहे हैं, इसका एक कारण राष्ट्रवादी और धुर दक्षिणपंथी ताक़तों का उद्भव भी हैं जो जलवायु परिवर्तन की समस्या को अपने चस्मे से देख रहा है।
ऐसी परिस्थितियों में जब सम्पूर्ण विश्व द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका के बाद अपने सबसे कठिनतम दौर से गुजर रहा है, पाकिस्तान की त्रासदी हम सब के लिये, हमारी सरकारों के लिए,और पूरी मानवता के लिए प्रकृति की चेतावनी है, कि जाग सको तो जाग लो।