उत्तराखंड में सेब, कीवी, मोटे अनाज और ड्रैगन फ्रूट की खेती करने पर प्रदेश सरकार 80 फीसदी तक सब्सिडी देगी। राज्य में बाजार की मांग पर आधारित खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से प्रदेश मंत्रिमंडल ने कई अहम प्रस्तावों पर मुहर लगाई। इसके तहत उत्तराखंड की कीवी नीति के प्रस्ताव को भी कैबिनेट की ओर से मंजूरी दे दी गई है।
मंगलवार को राज्य सचिवालय में देर शाम तक चली प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में 25 प्रस्तावों पर चर्चा हुई। सचिव मंत्रिपरिषद शैलेश बगोली ने बताया कि सीएम पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में हुई बैठक में मंजूर हुई कीवी नीति के तहत सरकार ने राज्य में 2030-32 तक 3300 हेक्टेयर क्षेत्रफल में 33 हजार मीट्रिक टन कीवी का उत्पादन करने का लक्ष्य बनाया है। वर्तमान में 682 हेक्टेयर में 381 मीट्रिक टन कीवी का उत्पादन हो रहा है। नीति के तहत 50 से 70 फीसदी की सब्सिडी दी जाएगी।
कैबिनेट ने मुख्यमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्यम उन्नयन योजना के तहत सॉर्टिंग व ग्रेडिंग इकाई स्थापित करने के लिए 60 प्रतिशत तक अनुदान मिलेगा। वहीं, सेब की तुड़ाई के बाद प्रबंधन योजना को मंजूरी दी गई है।
ड्रैगन फ्रूट की खेती में बढ़ी सब्सिडी
कैबिनेट ने ड्रैगन फ्रूट की खेती को बढ़ावा देने के लिए योजना को मंजूरी दे दी है। इसके तहत एक एकड़ में ड्रैगन की खेती पर आठ लाख रुपये की लागत आएगी। इसके लिए योजना में 80 प्रतिशत तक सब्सिडी का प्रावधान किया गया है।
मोटा अनाज नीति पर भी मुहर लगाई
कैबिनेट उत्तराखंड राज्य मोटा अनाज नीति पर मुहर लगा दी है। नीति में चयनित मोटे अनाज के बीज और जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक, जिंक, सूक्ष्म पोषक तत्व पर 80 प्रतिशत अनुदान दिया जाएगा। पहले चरण में 2025-26 से 2027-28 तक चयनित 24 विकासखंडों में 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल पर, दूसरे चरण में वर्ष 2028-29 से 2030-31 तक 44 विकासखंडों में 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में मोटे अनाज की खेती होगी।
सरकारी स्कूलों के बच्चों को सौगात
प्रदेश के सरकारी और अशासकीय स्कूलों में पहली से 12वीं कक्षा में पढ़ रहे 10 लाख छात्रों को मुफ्त कॉपियां मिलेंगी। कैबिनेट ने प्रस्ताव में मुहर लगा दी है। बता दें कि अब तक इन बच्चों को प्रदेश में मुफ्त किताबें देने का ही प्रावधान था।
डीएम, मंडलायुक्तों के अधिकार बढ़ाए
कैबिनेट ने आपदा प्रबंधन के तहत कराए जाने वाले कार्यों में जिलाधिकारियों और मंडलायुक्तों के वित्तीय अधिकार बढ़ा दिए हैं। आपदा आने पर राहत और बचाव कार्यों में जिलाधिकारी को अब एक करोड़ रुपये तक खर्च करने का अधिकार होगा। जिलाधिकारियों को अभी तक 20 लाख रुपये तक का अधिकार था। इसी तरह आपदा से निपटने को मंडलायुक्त के वित्तीय अधिकार एक करोड़ से बढ़ाकर पांच करोड़ रुपये कर दिया गया है।