- रक्षा बन्धन दिनांक 22 अगस्त 2021, राखी बांधने का समय प्रात-06:15 से
- विशेष- मातंग और शोभन योग से ‘राखी’ का पर्व विशेष योगकारक बन रहा है
यूँ तो हिन्दू धर्म में मनाये जाने वाले सभी ‘व्रत”पर्व’ और ‘त्योहारों’ का एक विशिष्ट धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक महत्व होता ही है, लेकिन सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि की समरसता को कायम करने और बहन-भाई के पवित्र रिश्ते को मजबूती के साथ स्नेह और समर्पणरूपी डोर में बांधने का काम जिस तरह से ‘रक्षा वंधन’के ‘पर्व’ से अनायास ही होता चला आ रहा है, ये अपने आप में जादुई और ‘हिंदू’ धर्म की खूबसूरती का परिचायक है।
जादुई इसलिए है कि संसार में ऐसी कोई भी व्यवस्था कायम नही की जा सकती है, जो रिश्तों की कड़ी को जोड़ने का जिम्मेदारी का अहसास कराने का, एक दूसरे (बहन-भाई) के प्रति स्नेह और समर्पण व्यक्त करने का काम कर सके। वस्तुतः रक्षा वन्धन का पर्व बहन-भाई के अनमोल रिश्ते को प्रतिवर्ष एक नया आयाम देता है। एक दूसरे के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है।
तो आयें विस्तार पूर्वक जानते हैं कि रक्षा बन्धन क्या है? कब मनाया जाता है? रक्षा बन्धन की पूजा विधि क्या है? रक्षा बन्धन का प्रारम्भ कब से हुआ? रक्षा बन्धन का इतिहास क्या है? बहन-भाई के अलावा कौन किसको और क्यों रक्षा सूत्र बांधता है जानने के लिए ज्योतिषाचार्य आचार्य पंकज पैन्यूली का पढ़े यह पूरा लेख।
रक्षा बन्धन मूलतः भाई बहिन का त्योहार है। लेकिन कुछ प्रान्तों में जैसे-उत्तराखंड आदि प्रदेशों में परम्परानुसार इस दिन कुल पुरोहित यजमान के घर जाकर उन्हें जनेऊ अर्पित करते हैं, और मंत्रोच्चार के साथ यजमान की सुख समृद्धि की कामना के लिए, यजमान परिवार की कलाई में ‘रक्षा सूत्र’ बांधते हैं। और यजमान कुलपुरोहित का आशीर्वाद लेकर उन्हें श्रद्धानुसार उपहार और दक्षिणा भेंट करते हैं।
गुरुकुल की परम्परानुसर आज के दिन शिष्य गुरु को और गुरु शिष्य को रक्षा सूत्र बांधते हैं। प्रकृति संरक्षण की भावना से भी आज के दिन कुछ लोग या कुछ संगठन के लोग वृक्षों को रखी बांधते हैं। रक्षा बंधन का अर्थ क्या है? ‘रक्षा’का मतलब सुरक्षा और ‘बन्धन’का मतलब बाँधना। अर्थात बहन भाई के हाथ में राखी का सूत्र बाँधकर सुरक्षा की जवाब देही सुनिश्चित करती है।
रक्षा बन्धन की विधि-बहिनों को थाली में राखी के साथ रौली अथवा हल्दी, साबुत चावल सम्भव हो तो फूल और दीपक रखना चाहिए। फिर भाई को किसी आसान,कुर्सी आदि में बिठाकर सर्वप्रथम गणेश,विष्णु,कृष्ण अथवा जिस किसी देवी देवता के प्रति आपकी श्रद्धा हो का स्मरण करें। फिर सर्व प्रथम भाई को टीका करें,टीके के ऊपर चावल लगायें।और फिर चावल फूल सर के ऊपर रखें। और फिर दाहिनी कलाई में राखी बांधे।
रक्षा बन्धन सामाजिक गड़जोड की पराकाष्ठा-सगे-भाई बहन के अलावा कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं,जिनकी बुनियाद भावना पर आधारित होती है-जैसे धर्म-भाई-बहिन का रिश्ता,ये सगे तो नही होते हैं, पर सगे से कम भी नही होते हैं।इस प्रकार दो लोगों के जुड़ने मात्र से दो परिवार जुड़ जाते हैं। इसी प्रकार, बहिन चचेरे, ममेरे, फुफेरे भाई को भी रक्षा सूत्र बांधती है, जिससे रिश्तों में सौहार्द और आत्मीयता का भाव बना रहता है। इस प्रकार रक्षा बन्धन का पर्व न केवल एक पर्व है, अपितु सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को भी समृद्ध बनाने का काम करता है।
रक्षाबंधन का प्रारम्भ कब से माना जाता है? ऐसी मान्यता है, की राजा बलि ने एक बार भगवान को भक्ति के बल पर जीत लिया और यह वरदान मांगा कि अब आप मेरे ही राज्य में रहें,भगवान मान गये और उसी के राज्य में रहने लगे। वापस न आने से लक्ष्मी जी दुःखी रहने लगी।तब एक बार नारद जी के परामर्श पर लक्ष्मी जी पाताल लोक गई और बलि के हाथ में रखी बांधकर उसे भाई बनाया और फिर फिर निवेदन पर विष्णु जी को वापस लेकर आयी। तब से ही रक्षा बन्धन की परम्परा चल रही है।
नोट- इस वृतान्त में कुछ मतान्तर भी हैं।
आचार्य पंकज पैन्यूली
(ज्योतिष एवं आध्यात्मिक गुरु) संस्थापक भारतीय प्राच्य विद्या पुनुरुत्थान संस्थान ढालवाला। कार्यालय-लालजी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स मुनीरका, नई दिल्ली। शाखा कार्यालय-बहुगुणा मार्ग पैन्यूली भवन ढालवाला ऋषिकेश। सम्पर्क सूत्र-9818374801, 8595893001