जगत सागर बिष्ट
उत्तराखंड के टिहरी जिले में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी औतार सिंह तोपवाल जिला अस्पताल बौराड़ी को 8 मार्च 2019 को पीपीपी मोड यानी लोक निजि सहभागिता के अन्तर्गत हिमालयन चिकित्सालय जौलीग्रान्ट को प्रदेश सरकार ने इस सोच के साथ दिया कि जनपद के दुरस्त क्षेत्र से आये गरीब ग्रामीणों का इलाज जनपद में ही हो सके, लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी लोगों को अच्छी स्वास्थ्य सुविधा नही मिल पायी और रैफर सेन्टर का दाग धोने में प्रदेश सरकार का यह पीपीपी मोड का फारमूला भी काम नही आया।
तत्कालीन समय मे क्षेत्र के लोगों ने निजिकरण का विरोध इसलिए नही किया कि लोगों को आशा थी कि जिला अस्पताल में सुधार होगा और निजि बडे अस्पताल के बडे-बडे बिलों से उन्हें निजात मिल सकेगी, लेकिन ऐसा नही हुआ। अब जिला अस्पताल से रैफर मरीजो का हजारों का बिल हिमालयन चिकित्सालय जौलीग्रान्ट फाड़ रहा है।
आलम यह है कि आज भी जनपद के गरीब मरीज महंगा इलाज कराने को मजबूर है । राज्य सरकार की सिफारिशों के आधार पर विश्व बैंक टिहरी अस्पताल को हर वर्ष लगभग दो करोड़ से अधिक धन मुहैय्या करवा रहा है। आज जो सुविधा औतार सिंह अस्पताल में मिल रही है वह पहले भी मिलती थी, लेकिन पहले सरकारी डाक्टर व कर्मचारी जिमेदारी के साथ आठ से दो बजे तक बैठते थे, जिमेदारी के साथ मरीज का इलाज करते थे। लेकिन पिछले तीन सालों में नियमित सिनियर डॉक्टर व कर्मचारी नही बैठते है । पूरा अस्पताल ट्रेनर डॉक्टरों व भाडे के कर्मचारी चला रहे है।
हिमालयन चिकित्सालय के डॉक्टरों व कर्मचारीयों के लिए टिहरी का अस्पताल मात्र स्वास्थ्य पर्यटन बन कर रह गया है जिनके लिए जौलीग्रान्ट से टिहरी तक गाडीयां लगी है । नई टिहरी में होटल व होटलो से आने जाने के लिए गाडीयां लगी है। डॉक्टर अस्पताल आते है स्वास्थ्य कैम्प कर चले जाते है । सिनियर डाँक्टर जिला अस्पताल को महीने भर पूरा समय नही दे पा रहे है जिससे मरीजो में खासा असर देखने को मिल रहा है।
पूर्व कैबिनेट मंत्री दिनेश धनै ने बताया कि उनकी सरकार के समय जिला अस्पताल में डॉक्टरों व कर्मचारीयों व अन्य सुविधा पूरी कर दी गयी थी। ब्लड बैंक व ऑपरेशन तक होने लगे थे, लेकिन उनके बाद की सरकार द्वारा सही चल रहे जिला अस्पताल का निजिकरण कर दिया। जिसका खामियाजा जनपद के लोगो को भुगतना करना पड़ रहा है ।
जिला अस्पताल के सरकारी सीएमएस डॉ अमित राय ने बताया कि एमओयू के अनुसार ट्रेनर डॉक्टर व भाडे के कर्मचारी को अस्पताल व सरकार द्वारा कोई भुगतान नही किया जाता है। यह हिमालयन ट्रस्ट की व्यवस्था है। मरीज विनोद बर्त्वाल का कहना है कि किसी व्यक्ति का इलाज उसकी पुराने रोग के इतिहास के आधार पर किया जाता है, लेकिन अस्पताल में नये-नये डाँक्टरों के आने- जाने से हर डाक्टर अपनी जहां उसके लींक है उस कम्पनी दवा लिख रहे है जिससे मरिज का स्वास्थ्य बिगडने का खतरा बना है ।
जिला अस्पताल में एक नई समस्या पैदा हो गयी है । 11 डाँक्टरों व 10 कर्मचारीयों की रखवाली के लिए 30 प्राईवेट गार्ड तैनात किये गये जो डॉक्टरों से मरीजों को मिलने नही देते है, हर समय अस्पताल में भय का माहौल बना कर रखते है। जिससे लोगों में आक्रोष व्याप्त है।
जिला अस्पताल अस्पताल कम और छावनी ज्यादा दिखाई देती है । कहने को तो सरकारी अस्पताल में 28 रू की सरकारी पर्चा काटा जाने वाले मरीज को अल्ट्रा साऊड , सिटी स्कैन ,एक्सरा व कोई भी टैस्ट करवाना पडे तो उसका मरीज को प्राईवेट वाला रेट देना होता है। बिना ऐड़मिट हुऐं सरकारी अस्पताल में सरकारी स्वास्थ्य कार्ड नही चलता है।
हिमालयन चिकित्सालय के डॉक्टरों का इलाज ऐसा कि आप भी हैरान रह जाये, अभिशेक उर्म 15 साल खेलते हुऐ हाथ का अंगुठा फैक्चर मवाद भर गया , देहरादून रैफर। दिवाकर उर्म 17 साल नगर पालीका के झूले से दाया हाथ फैक्चर गलत तरीके से हाथ जोड़ दिया, परिजनों ट्टारा देहरादून प्राईवेट अस्पताल में अपरेशन हाथ पर रोढ डालनी पडी ।
मनवीर सजवाण उर्म 43 सिटी स्कैन के 2500 देने पडे। स्वास्थ्य कार्ड लेने से मना किया गया। ऐसा हालतों में टिहरी का औतार सिंह सरकारी अस्पताल चल रहा है। सरकार को चहिए कि पीपीपी मोड दिये इस अस्पताल की पूनः समीक्षा की जाये ,और सही इलाज कराने के लिए कार्यवाही की जाये ।
जिले के जनप्रतिनिधियों को चहिए कि वह जनता को मात्र वोट का हथियार न समझे उन्हें उनके मूल अधिकार देने के लिए कार्य करने के लिए आगे आये। स्वास्थ्य जैसी आवश्यक सेवा में भ्रष्टाचार को महत्व देने वालों पर नकेल लगाने के लिए आगे आने की जरुरत पर बल दिये जाने की जरुरत है।