डॉ एस पी सती, भू विज्ञानी, पर्यावरणविद की कलम से
असल में अलकनंदा या बद्रीनाथ में इसे विष्णु गंगा कहेंगे, की यह घाटी हिम अवधावों (एवलांच)के लिए जानी जाती है। बद्रीनाथ मंदिर के ठीक ऊपर एक मानव के आंख की भौं (eye brow)सदृश चट्टान है जिसके कारणअवधव के आने पर वो सीधे दूसरी तरह डायवर्ट हो जाता है और मंदिर बचा रहता है। सैकड़ों सालों से मंदिर का अक्षुण्ण रहने का कारण उसका इस बुद्धिमत्ता से किया गया साइट सिलेक्शन है। अवधाओं की संभावना को देखते हुए ही मंदिर के ऊपर ट्राइएंगुलर स्ट्रक्चर बनाए गए हैं।
असल में ग्लेशियरों की बहुतायतों के काल में आज से सैकड़ों वर्ष पहले इस क्षेत्र की पहाड़ियों की चोटियों में कुछ गर्त बने थे जिन पर छोटे मोटे ग्लेशियर बन जाते थे। इन ग्लेशियरों को माउंटेन ग्लेशियर या फिर बड़े गड्ढों में बने अपेक्षाकृत बड़े ग्लेशियरों को सर्क ग्लेशियर कहते हैं।
जब ग्लेशियरों के पिघलने का क्रम प्रारंभ हुआ तो सबसे पहले ये छोटे छोटे माउंटेन ग्लेशियर ही खत्म हुए। फिर सर्क ग्लेशियरों का नंबर आया।
अब इन ग्लेशियरों की जगह मिट्टी पत्थर से कुछ कुछ भरे गड्ढे रह गए हैं जिन्हें रिलिक्ट सर्क या फिर रिलिक्ट माउंटेन ग्लेशियर या फिर हैंगिंग ग्लेशियल साइट्स कह सकते हैं।
ताजा हिमपात की घटनाओं में इन गड्ढों में अधिक बर्फ भर जाती है। क्योंकि ताजा बर्फ की धरती से पकड़ कम होती है, लिहाजा ये ताजा बर्फ का मास अपने भार से टूट कर तेजी से नीचे गिर जाता है। इसी को अवधव या एवलांच कहते हैं। मार्च 2021 में गिरथी घाटी ( धौली की सहायक नदी) में इसी तरह की प्रक्रिया में काफी मजदूर हताहत हुए थे। इस घटना पर हमने एक छोटा सा पत्र प्रकाशित कर इस घाटी के वे संवेदनशील इलाके चिन्हित किए थे जहां जहां ये एवलांच आने की संभावना है।
माना में मजदूरों का कैंप इसी तरह के संभावित क्षेत्र में स्थित था।
अब सवाल यह है कि ये एवलांच अधिकांशतः फरवरी के आखिरी हफ्ते और मार्च अप्रैल में क्यों आते हैं?
तो इसका कारण यह है कि दिसंबर जनवरी में पृथ्वी का तापमान काफी कम होता है तो इस दौरान पड़ने वाली बर्फ में पानी की मात्रा कम, घनत्व अधिक होता है। और पाला पड़ते रहने से बर्फ की पकड़ मजबूत होती है, वह धरातल से आसानी से नीचे की ओर खिसक नहीं पाती। इसको कुछ यूं समझिए। एक छोटी प्लेट में बर्फ जमाइए। जब आप ठंडी बर्फ वाली प्लेट बाहर निकालेंगे तो बर्फ प्लेट पर चिपकी रहेगी, खिसकेगी नहीं। परंतु कुछ देर में जब बर्फ पिघलने लगेगी तो सबसे पहले वह प्लेट की सतह से पकड़ छोड़ेगी।
जलवायु में आए उल्लेखनीय बदलाव का एक पहलू यह भी है कि अब प्रायः यह देखा जा रहा है कि पश्चिमी विक्षोभ की सक्रियता अब दिसंबर जनवरी की अपेक्षा फरवरी के आखिरी हफ्ते, मार्च अप्रैल और यहां तक कि गर्मियों में शिफ्ट हो गई है। मार्च अप्रैल की बर्फ ग्लेशियरों के साइज में कोई फर्क नहीं डालते क्योंकि यह बर्फ शीघ्र पिघल जाती है। इसके अतिरिक्त अधिक एवलांच की संभावना बनाती हैं।
गर्मियों में आए पश्चिमी विक्षोभ हिमालय में मानसून की आर्द्रता से मिल भयंकर तबाही मचाते हैं। 2013 की केदारनाथ त्रासदी इसका एक उदाहरण है।
इस संभावना के आलोक में क्या बदरीनाथ मास्टर प्लान के तहत हो रहे निर्माण की स्थिति का भी आकलन की जायेगा??