उत्तराखंड के चमोली जिले का प्रमुख कस्बा जोशीमठ इस समय में बड़े संकट का सामना कर रहा है। भू-धंसाव से लगातार घरों में दरारें पड़ रही है। इस बीच जोशमीठ में प्रशासन के साथ स्थानीय लोगों की मुआवजे को लेकर चल रही बैठक में बात नहीं बनी। प्रशासन की ओर से प्रभावितों परिवारों को डेढ़ लाख रुपये मुआवजा दिए जाने की बात कही गई, लेकिन प्रभावितों ने इससे इनकार कर दिया।
सीएम धामी आज जोशीमठ में रात्रि प्रवास करेंगे। रात्रि प्रवास के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जोशीमठ पहुंच गए हैं। प्रस्तावित सभी कार्यक्रमों को स्थगित कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जोशीमठ पहुंचेंगे।
प्रभावित परिवारों को उपलब्ध कराई जा रही सहायता एवं किए गए कार्यों से सीएम अवगत होंगे। वहीं भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सीएम से फोन पर स्थिति का जायजा लिया।
1970 में अलकनंदा की बाढ़ के बाद यूपी सरकार ने 1976 में तत्कालीन गढ़वाल आयुक्त एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों की 18 सदस्यीय कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में सिंचाई, लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर, रुड़की इंजीनियरिंग कालेज (अब आईआईटी) और भूर्गभ विभाग के विशेषज्ञों के साथ ही पर्यावरणविद् चंडी प्रसाद भट्ट शामिल थे।
कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में माना था कि जोशीमठ भू-स्खलन प्रभावित क्षेत्र है। इसके ढलानों से किसी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। भूस्खलन इलाकों में पेड़ न काटे जाएं, पहाड़ी ढलानों पर पौधरोपण किया जाए। पांच किमी के दायरे में किसी प्रकार का खनन न किया जाए।
पिछले साल 16 से 19 अगस्त के बीच राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधिशासी निदेशक डॉ. पीयूष रौतेला के नेेतृत्व में एक टीम ने जोशीमठ का सर्वेक्षण किया था। शोध के बाद उन्होंने नवंबर माह में 28 पृष्ठों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसमें उन्होंने माना था कि जोशीमठ के नीचे अलकनंदा में कटाव के साथ ही सीवेज और ड्रेनेज की व्यवस्था न होने से पानी जमीन में समा रहा है। इससे जमीन धंस रही है।
जुलाई 2022 को चार भू-विज्ञानियों प्रो. एसपी सती, डॉ. नवीन जुयाल, प्रो. वाईपी सुंदरियाल और डॉ. शुभ्रा शर्मा का एक शोध पत्र टूवर्ड अंदरस्टैंडिंग द कॉज ऑफ सोयल क्रीप एंड लैंड सबसाइडेंस अराउंड हिस्टोरिकल जोशीमठ टाउन जारी किया था। इसमें उन्होंने कहा था कि यहां पहाड़ी ढलानों को काटकर बहुमंजिला इमारतें खड़ी कर दी गई। तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की टनल जोशीमठ के नीचे करीब एक किमी गहराई में गुजर रही है। उनका कहना था कि यह सुरंग जोशीमठ व आसपास के लिए कभी भी मुश्किलें पैदा कर सकती है। वहीं, 25 मई 2010 को करेंट साइंस शोध पत्रिका में प्रकाशित गढ़वाल विवि के पूर्व प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट व डॉ. पीयूष रौतेला के शोध पत्र में भी स्पष्ट कहा गया था कि परियोजना की टनल बोरिंग मशीन की वजह से पानी का रिसाव बढ़ रहा है जो कि भविष्य का खतरनाक संकेत है।
जोशीमठ भू-धंसाव: पांच प्रमुख कारण
1- एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना की टनल का निर्माण
2- शहर में ड्रेनेज की व्यवस्था न होना
3- पुराने भू-स्खलन क्षेत्र में बसा शहर
4- क्षमता से अधिक अनियंत्रित निर्माण कार्य
5- अलकनंदा नदी में हो रहा भू-कटाव
आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर जोशीमठ धंस क्यों रहा है? वैज्ञानिकों के अपने तर्क हैं। सरकार के अपने तथ्य और इंतजामात। जोशीमठ को लेकर चार प्रमुख शोध हो चुके हैं, जिनमें अलग-अलग समय पर शोधकर्ताओं ने अलग कारण बताए।
टिहरी की तर्ज पर न्यू जोशीमठ बनाने पर सरकार विचार कर रही है, लेकिन स्थानीय लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं। वे जोशीमठ में ही रहना चाहते हैं। हालांकि सरकार ने जोशीमठ की आबादी को शिफ्ट करने के लिए तीन स्थानों का चयन किया है। इसमें एक जोशीमठ में जेपी कालोनी के पास उद्यान विभाग की जमीन है। दूसरा पीपलकोटी और तीसरा गौचर के पास जमीन पर लोगों को शिफ्ट करने की योजना बनाई जा रही है।