21.2 C
Dehradun
Tuesday, December 3, 2024
Homeहमारा उत्तराखण्डघास काटने की मशीन से महिलाओं के जीवन में आया नया सवेरा,...

घास काटने की मशीन से महिलाओं के जीवन में आया नया सवेरा, सब्सिडी का उठाया फायदा

असौज या आश्विन तथा कार्तिक मास पहाड़ की महिलाओं के कंधों पर भारी बोझ लेकर आता रहा है। असौज में घास काटने में सुबह से शाम तक महिलाएं पालतू मवेशियों के लिए सालभर की घास काटती हैं। घास काटने के बाद सुखाकर उसके लूट्टे लगाए जाते हैं।

करीब दो माह तक महिलाएं व बेटियां धूप में घास काटती हैं तो इससे उनको अत्यधिक श्रम करना होता है। मगर अबकी बार विकास खंड स्तर पर घास काटने वाली मशीनों ने मानो महिलाओं के जीवन को आसान बना दिया तो काम का बोझ भी एक तिहाई हो गया है। यह बोझ कम हुआ घास काटने की मशीन से।

चंपावत जिले के लोहाघाट ब्लॉक अंतर्गत ग्राम पंचायत गंगनौला की प्रधान कमला जोशी व पूर्व प्रधान ललित मोहन जोशी के प्रयासों ने ग्राम पंचायत के तोक गांव चनोड़ा, गल्लागांव, रुपदे, अनुसूचित बस्ती बचकड़िया, गंगनौला की महिलाओं के जीवन में नया सवेरा आ गया।

पूर्व प्रधान ललित को पता चला कि ब्लॉक के माध्यम से समूहों को 90 प्रतिशत सब्सिडी में घास काटने की मशीन मिल रही है। जुलाई माह में उन्होंने उन पुरुषों के नाम से दो समुह बनाये, जो भूमिधर किसान हैं। इसके बाद समूहों के माध्यम से घास काटने की मशीन खरीदी गई।

सब्सिडी के बाद घास काटने की मशीन के लिए प्रति चार हजार तो ट्रेक्टर के लिए 15 या 19 हजार जमा कराए गए। मशीन मिलने के बाद घास कटाई शुरू हुई तो महिलाओं के काम का बोझ 25 प्रतिशत से भी कम रह गया। हाथ से चलाने वाली मशीन को पुरुष चलाने लगे तो एक दिन में 20 महिलाओं के बराबर घास कटने लगी। अब तक ग्राम पंचायत में 40 मशीनें क्रय हो चुकी हैं तो 5 ट्रेक्टर आ गए हैं।

एक लीटर पेट्रोल से 20 महिलाओं की बराबरी
घास काटने की मशीन एक लीटर पेट्रोल की कटाई से एक दिन में 200 से अधिक तक घास की गठिया बन जाती हैं। जो 20 महिलाओं के बराबर श्रम है। गांव की लक्ष्मी जोशी, अनिता, भैरवी राय, कविता जोशी, उर्मिला आदि महिलाओं का कहना था कि इस मशीन ने उनके काम का बोझ बेहद कम हो गया है। पुरुष ही घास काटते हैं, उन्हें सिर्फ समेटना पड़ता है।

जिन घरों में मशीन चलाने के लिए पुरूष नहीं हैं, आपसी सहभागिता से घास काटी जा रही है। पहले तक असौज माह हमारे लिए बेहद कष्टकारी होता था। अब घास के साथ खेत जुताई के लिए बैल पालने की जरूरत नहीं है। इससे बंजर खेतों को भी आबाद करने का अवसर मिल गया है। चनोड़ा के योगेश जोशी कहते हैं, पहले घास काटने में घर की महिलाओं को एक माह तक व्यस्त रहता पड़ता था, लेकिन अब उनका काम सीमित हो गया।

जो पुरुष पहले कभी घास के खेतों तक नहीं जाते थे, अब मशीन लेकर घास काटकर महिलाओं के काम को कर रहे हैं। गंगनौला के साथ ही पास के गांव भूमलाई, ईड़ाकोट, कोयाटी में भी घास काटने की मशीन ने कामकाजी महिलाओं के जीवन में बड़ा सकारात्मक बदलाव आया है।

RELATED ARTICLES

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

- Advertisment -

Recent Comments

error: Content is protected !!