11.2 C
Dehradun
Saturday, December 21, 2024
Homeहमारा उत्तराखण्डजीवन बचाने को आपस में बदल डाले हृदय के एट्रियल चैम्बर, जन्म...

जीवन बचाने को आपस में बदल डाले हृदय के एट्रियल चैम्बर, जन्म से परेशान थी 7 साल की बिटिया

– एम्स के पीडियाट्रिक कॉर्डियक सर्जन ने की सफल सर्जरी

एम्स ऋषिकेश
4 अक्टूबर, 2024
————
7 साल की एक बच्ची के हृदय की धमनियां जन्म से ही असमान्य थी और विपरीत दिशा में उलट गयी थी। उम्र बढ़ने लगी तो इस बीमारी के कारण उसके रक्त में ऑक्सीजन का स्तर प्रभावित होने से बच्ची का जीवन संकट में पड़ गया। ऐसे में एम्स ऋषिकेश के चिकित्सकों ने उसके हृदय के एट्रियम चैम्बरों को आपस में बदलकर न केवल बच्ची का जीवन लौटा दिया अपितु चिकित्सीय क्षेत्र में ऊंची छलांग भी लगायी है। उत्तराखण्ड में इस तरह का यह पहला केस है। बच्ची अब स्वस्थ है और उसे एम्स से डिस्चार्ज कर दिया गया है।

यूपी के भंगरोला की रहने वाली 7 वर्षीया राधिका (बदला हुआ नाम) पिछले एक वर्ष से सांस लेने में दिक्कत से परेशान थी। साथ ही वह जन्म के समय से ही शरीर के नीले रंग से ग्रसित थी। परिवार वाले बिटिया को लेकर उत्तर प्रदेश के कई अस्पतालों में गए लेकिन इलाज को लेकर सभी ने हाथ खड़े कर दिए। अन्तिम उम्मीद लिए बच्ची को लेकर परिजन जब एम्स ऋषिकेश पंहुचे तोे विभिन्न जांचों में पता चला कि बच्ची जन्मजात बीमारी हृदय की बड़ी धमनियों के स्थानांतरण (ट्रांसपोजिशन ऑफ ग्रेट आर्टीज-टीजीए) से ग्रसित है। यह एक जन्मजात हृदय रोग है। इसमें हृदय से होकर जाने वाली मुख्य धमनियां विपरीत और गलत स्थानों पर होती है।

सी.टी.वी.एस विभाग के पीडियाट्रिक कार्डियक सर्जन डाॅ. अनीश गुप्ता ने रोगी की सभी आवश्यक जाचें करवायीं और परिजनों की सहमति पर बच्ची के हृदय की सर्जरी करने का प्लान तैयार किया। इससे पूर्व कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. भानु दुग्गल एवं डॉ. यश श्रीवास्तव द्वारा रोगी की इको कार्डियोग्राफी और एन्जियोग्राफी की गयी। डाॅ. अनीश गुप्ता ने बताया कि यह बीमारी जानलेवा है और अधिकांश मामलों में इस बीमारी से ग्रसित 90 प्रतिशत शिशुओं की जन्म के कुछ दिनों बाद ही मृत्यु हो जाती है। कहा कि इस बीमारी में ग्रसित बच्चे की सर्जरी जन्म के 3 सप्ताह के भीतर हो जानी चाहिए। डाॅ. अनीश ने बताया कि इस बच्ची को वीएसडी समस्या नहीं थी। ऐसे में बांया वेट्रिकल सिकुड़ जाता है और धमनियों को बदलने वाला (आर्टीरियल स्विच ऑपरेशन) मुश्किल हो जाता है। इसलिए उसके हृदय की धमनियों को न बदलकर एट्रियल चैम्बर के खानों को आपस में बदल दिया गया। मेडिकल भाषा में इसे (सेनिंग ऑपरेशन ) कहते हैं। इससे उसका हृदय अब ठीक ढंग से काम करने लगा और उसे सांस लेने में आसानी हो गयी। डाॅ. अनीश ने बताया कि सर्जरी के बाद उसका ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल 65 से बढ़कर 95 हो गया है। सर्जरी करने वाली डाॅक्टरों की टीम में डाॅ. अनीश के अलावा सीटीवीएस विभाग के ही डाॅ. दानिश्वर मीणा और एनेस्थेसिया के डाॅ. अजय मिश्रा आदि शामिल थे। सीटीवीएस के विभागाध्यक्ष प्रो. अंशुमान दरबारी और डाॅ. नम्रता गौड़ ने इसे विभाग के लिए एक विशेष उपलब्धि बताया।

संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह और चिकित्सा अधीक्षक प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने इस जटिल शल्य चिकित्सा की सफलता के लिए सर्जरी करने वाली टीम के कार्यों की सराहना की है।

RELATED ARTICLES

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

- Advertisment -

Recent Comments

error: Content is protected !!