नैनीताल। उच्च न्यायालय नैनीताल ने उत्तरकाशी व प्रदेश के अन्य वनों में रह रहे वन गुर्जरों को वनों से हटाए जाने के मामले में नाराजगी व्यक्त करते हुए सूबे के प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ, जिलाधिकारी नैनीताल, ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून, पौड़ी, टिहरी व जिलाधिकारी उत्तरकाशी को व्यक्तिगत रूप से 24 नवंबर को कोर्ट में विस्तृत रिपोर्ट के साथ पेश होने के निर्देश दिए हैं।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार के शपथपत्र पर भी असंतोष जाहिर किया। पूर्व में कोर्ट ने जिलाधिकारी उत्तरकाशी व सरकार को निर्देश दिए थे कि वह वन गुर्जरों के लिए आवास और खाने-पीने की सुविधा के साथ-साथ उनकी मवेशियों के लिए भी चारे की व्यवस्था करें। कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि सरकार उनके विस्थापन के लिए दोबारा से एक कमेटी बनाकर रिपोर्ट कोर्ट में पेश करे।
मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार थिंक एक्ट राइज फाउंडेशन के सदस्य अर्जुन कसाना व हिमालयन युवा ग्रामीण रामनगर ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि उत्तरकाशी जनपद में लगभग 150 वन गुर्जरों व उनकी मवेशियों को गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय पार्क में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है।
वन गुर्जर खुले आसमान के नीचे रहने के लिए मजबूर हैं। मवेशी भूख से मर रहे हैं। कोर्ट ने पूर्व में इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए उत्तरकाशी के जिलाधिकारी और उद्यान उप निदेशक कोमल सिंह को निर्देश दिए थे कि वे सभी वन गुर्जरों के लिए आवास, खाने-पीने के साथ ही दवाई की व्यवस्था करें और उनकी मवेशियों के लिए भी चारे की व्यवस्था कर उसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि उत्तराखंड के जंगलों में लगभग 10 हजार से अधिक वन गुर्जर पिछले 150 वर्ष से रह रहे हैं। अब सरकार उनको वनों से हटा रही है, जिसके कारण उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है और उनको अपने हक-हकूकों से भी वंचित होना पड़ रहा है। याचिकाकर्ताओं की ओर से उन्हें वनों से विस्थापित नहीं किए जाने की मांग की थी।