आचार्य पंकज पैन्यूली
श्राद्ध पक्ष / पितृ पक्ष का महत्त्व- प्रति वर्ष आश्विन मास कृष्ण पक्ष में आने वाले श्राद्ध पक्ष के बारे में लगभग सभी लोग जानते ही हैं, और यथा श्रद्धा अपने-अपने दिवंगत पितृ जनों के निमित्त, अर्चन, तर्पण, पिंडदान आदि क्रिया भी संपादित करते हैं।
लेकिन पितृ जनों के निमित्त प्रति वर्ष श्राद्ध पक्ष के जो सोलह दिन हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों ने सुनिश्चित किये हैं, उसके पीछे का सूक्ष्म विज्ञान, सूक्ष्म सिद्धान्त यदि हमारे मन मस्तिष्क में उतर जायेगा, तो हमारे लिए श्राद्ध पक्ष के मायने ही बदल जायेंगे। वस्तुतः श्राद्ध पक्ष केवल परंपराओं का निर्वाह मात्र हो ऐसा नही है।
श्राद्ध पक्ष में जहाँ हम अपने दिवंगत पितृ जनों की तृप्ति, उनके मोक्ष प्राप्ति की कामना, अखंड वैकुण्ठ लोक की कामना हेतु तर्पण, अर्चन, पिंडदान, अन्नदान, वस्त्र दान करते हैं, वहीं इन सब क्रियाओं से हम अपनी और अपनी कुल परंपरा की भावी और वर्तमान सन्तान की सुख-समृद्धि, आयु, आरोग्यता की कामना को भी काफी हद तक सुनिश्चित कर लेते हैं। शास्त्रों के अनुसार जिस कुल खानदान के पितृगण तृप्त होते हैं, उस कुल खानदान में हमेशा ही योग्य, सुखी और दीर्घ आयु वाली सन्तान पैदा होती है।
वस्तुतः संसार के प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर तीन ऋण होते हैं-
1 देव ऋण।
2. ऋषि ऋण।
3.पितृ ऋण।
यदि हम पितृ ऋण की बात करें, तो संसार के प्रत्येक व्यक्ति के ऊपर जन्म लेते ही “पितृ ऋण”प्रभावी हो जाता है। इस बात को सभी भली भाँति जानते ही हैं,कि माता,पिता,दादा,दादी,नाना,नानी आदि श्रेष्ठ जनों के हमारे ऊपर अनन्त उपकार होते हैं। जिन उपकारों को चुकाना एक क्या अनेकों जन्मों में भी संभव नही है। लेकिन उनके उपकारों को यथासंभव चुकाना भी जरूरी है।।
इसलिये प्रत्येक व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य तो यह होना चाहिए कि वह माता पिता आदि श्रेष्ठजनों के जीते जी उनकी आज्ञा में रहकर यथोचित, सेवा, सत्कार करें, और उनके मरणोपरांत श्रद्धा पूर्वक तर्पण, पिंडदान आदि क्रिया प्रतिवर्ष करता रहे। यही एक मात्र उपाय अथवा मार्ग है, जिसके माध्यम से हम पितृ ऋण से मुक्ति पा सकते हैं। अन्यथा ऋण का सामान्य सिद्धान्त यही होता है, कि वह दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जाता है।
श्राद्ध का महत्व
ब्रह्म पुराण-के अनुसार जो व्यक्ति श्रद्धा और विश्वास के साथ पितरों के निमित्त तर्पण करता है, पिंडदान करता है। उसके कुल में कोई भी दुःखी नही रहता। गरुड़ पुराण-के अनुसार पितृ गण तर्पण आदि से संतुष्ट होकर मनुष्यों के लिए आयु,पुत्र,यश,स्वर्ग,धन-धान्य व समस्त वैभव प्रदान करते हैं।।
मार्कण्डेय पुराण- के अनुसार श्राद्ध से तृप्त होकर पितृगण,श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन,विद्या,सुख,राज्य,स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करते हैं।
श्राद्ध की विधि
आश्विन कृष्ण पक्ष में पित्रों की अर्चन,पूजन पद्धति के क्रम में मुख्य रूप से तर्पण कर्म को प्रधानता दी गई है। इस क्रम में सबसे पहले 1. देव तर्पण, 2.ऋषि तर्पण,3. दिव्य मानव तर्पण, 4.दिव्य पितृ तर्पण, 5.यम तर्पण 6.पितृ तर्पण आदि-आदि प्रकार से तर्पण प्रक्रिया होती है। इसी तर्पण क्रिया में नाना पक्ष की तीन पीढ़ी,और परिवार के दिवंगत श्रेष्ठजनों सहित अन्य पितृ जनों के निमित्त भी तर्पण अर्पित किये जाते हैं।।
उसके बाद मुख्य रूप से गाय, कुत्ते और कौवे के निमित्त “ग्रास”यानी उपलब्ध भोजन सामग्री का थोड़ा हिस्सा किसी पत्ते या पात्र में रखकर “संकल्प”विधि के बाद क्रमशः गाय, कुत्ते और कौवे को अर्पित किया जाता है।
गाय, कुत्ते और कौवे को पितृ पूजन में सम्मिलित किए जाने के पीछे भी एक बहुत बड़ा सिद्धान्त काम करता है। जिस प्रकार धरातल पर रहने वाले सभी जीव जंतुओं में,मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है, उसी प्रकार सभी पशुओं में “गाय” अद्धभुत गुणों से सम्पन्न और सर्वश्रेष्ठ हैं। गाय के गुणों के बारे में सभी परिचित ही हैं। वहीं दूसरी तरफ कुत्ते और कौवे की योनि को शास्त्रों में बहुत शुभ नही माना जाता है।
अतः हमारी समझ में जीव चाहिए गुणी हो या गुणहीन वह ईश्वर द्वारा निर्मित सृष्टि का अंश है। यदि उसको प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आहार के लिए मानव समुदाय के ऊपर ही निर्भर रहना पड़ता हो तो,उन सभी जीव;जंतुओं के पोषण के बारे में सोचना हम सब की जिम्मेदारी बनती है।
पितृ पूजन के साथ जीव जंतुओं को भोजन अर्पित करने की पीछे ये एक अहम कारण हो सकता है। बाकी इस संबंध और भी सिद्धान्त शास्त्रों में उपलब्ध हैं।
2021 की श्राद्ध तिथियां- श्राद्ध पक्ष 20 सितंबर से शुरू हो रहे हैं, जो 6 अक्टूबर तक चलेंगे। छठी तिथि को छोड़कर सभी प्रथमा आदि तिथियों के श्राद्ध नियत तिथि पर ही होंगे। छठी तिथि का श्राद्ध 27 सितंबर को पड़ रहा है।
16 तिथियों का महत्व- साल में बारह महीने होते हैं, महीने में दो पक्ष होते हैं, और प्रति एक पक्ष में शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से पूर्णिमा तक और कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से अमावस्या तक पन्द्रह तिथियां होती है। पितृ पक्ष जो कि कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से अमावस्या तक होता है, के साथ पूर्णिमा को जोड़कर कुल 16 तिथियां बनती है।
इस प्रकार महीना या पक्ष चाहे कोई भी हो ,इन सोलह तिथियों में से किसी एक तिथि में ही व्यक्ति की मृत्यु होती है। अतः जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु की तिथि घटित होती है। उसी तिथि को उसका श्राद्ध,तर्पण करने का विधान है।
विशेष
जिन लोगों को अपने माता-पिता या पूर्वजों की तिथि ज्ञात नही होती है।उन्हें अमावस्या के दिन पितृ तर्पण करना चाहिए। इस तिथि को पितृ विसर्जनी तिथि भी कहते हैं। जिन लोगों की अकाल मृत्यु हुई हो या जिसने आत्म हत्या की हो, विषपान किया हो अथवा जिन लोगों की जल में डूबने से, शस्त्र आघात से मृत्यु हुई हो उनका चतुर्दशी के दिन श्राद्ध का विधान है।
अविवहाहित मृतकों के लिए पंचमी तिथि के दिन श्राद्ध कर्म का विधान है। मुख्यतः श्राद्ध कर्म दिवंगत पितृजनों के प्रति श्रद्धा, समर्पण और भाव व्यक्त करने का और उनको स्मरण करने का एक जरिया है। जिन ऋषि मुनियों ने हमको ऐसी व्यवस्था से जोड़ने का काम किया है। उनको कोटि-कोटि प्रणाम।
आचार्य का परिचय:
आचार्य पंकज पैन्यूली (ज्योतिष एवं आध्यात्मिक गुरु) संस्थापक भारतीय प्राच्य विद्या पुनुरुत्थान संस्थान ढालवाला। कार्यालय- लालजी शॉपिंग कॉम्प्लेक्स मुनीरका, नई दिल्ली। शाखा कार्यालय-बहुगुणा मार्ग पैन्यूली भवन ढालवाला ऋषिकेश। सम्पर्क सूत्र-9818374801, 8595893001