11.3 C
Dehradun
Saturday, April 27, 2024
Homeस्वास्थ्यनशावृत्ति: एक प्रवृत्ति नहीं बायोलॉजिकल ब्रेन डिसऑर्डर

नशावृत्ति: एक प्रवृत्ति नहीं बायोलॉजिकल ब्रेन डिसऑर्डर

  • एम्स में उपलब्ध है नशे के आदी मरीजों का समुचित उपचार
  • एम्स, ऋषिकेश ने किया आगाह, अनधिकृत नशामुक्ति केंद्रों में इलाज कराने से बचें मरीज

नशे की बीमारी ने समाज में आज लगभग सभी को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। बढ़ता तनाव, शहरीकरण, बेरोजगारी, युवाओं में जोखिम लेने वाले व्यवहार का बढ़ना, घरेलू कारण अथवा साथियों का दबाव ऐसे बहुत से कारण इस सबकी मुख्य वजह हो सकते हैं। मगर यहां यह स्पष्ट करना जरुरी है कि नशा करते रहना एक प्रवृत्ति नहीं बल्कि एक बायोलॉजिकल ब्रेन डिसऑर्डर है।

जिसमें व्यक्ति के दिमाग में कई अस्थायी व स्थायी बदलाव आते हैं तथा इस रोग से छुटकारा पाने के लिए उपचार की नितांत जरुरत पड़ती है। नशे के रोग को इलाज (दवाओं और स्टरक्चरड काउंसलिंग) की मदद से ठीक किया जा सकता है। उत्तराखंड राज्य में सबसे अधिक किए जाने वाले नशों में शराब, कैनाबिस (गांजा, भांग आदि) अथवा ओपियाइड्स का नशा मुख्य है। नशे का समग्र उपचार मरीज को नशा मुक्ति केंद्रों में दाखिल कर या अस्पताल की ओपीडी के स्तर पर किया जाता है।

एम्स, दिल्ली की निगरानी में एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी

देखा गया है कि वर्तमान में उपलब्ध संसाधनों मसलन बेहतर दवाओं और काउंसलिंग सुविधाओं के माध्यम से ज्यादातर मरीजों को नशा मुक्ति केंद्र/अस्पतालों में दाखिले की जरूरत नहीं पड़ती। निदेशक एम्स ऋषिकेश पद्मश्री प्रोफेसर डॉ रवि कांत ने बताया कि एम्स में MOSJ&E के सहयोग से तथा NDDTC, एम्स, दिल्ली की निगरानी में एडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटी (ATF) संचालित की जा रही है, जो नशे के रोगियों का उच्चस्तरीय इलाज निशुल्क प्रदान कर रही है।

लिहाजा इस तरह के रोगों से ग्रसित मरीजों को समय रहते इस सुविधा का लाभ लेना चाहिए व अपने जीवन का संरक्षण करना चाहिए। ऐसा करने से वह अपनी खोई हुई सेहत व सामाजिक प्रतिष्ठा को भी फिर से पा सकते हैं और समाज की मुख्यधारा से जुड़ सकते हैं। उनका कहना है कि इस दिशा में नशे के आदी मरीज के पारिवारिकजनों, रिश्तेदारों, मित्रों व परिचितों को पहल करने की आवश्यकता है उन्हें ऐसे मामलों में अपने प्रियजनों को लेकर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

संस्थान के मनोरोग चिकित्सा विभागाध्यक्ष डॉ. रवि गुप्ता ने बताया है कि एम्स ऋषिकेश में इन रोगियों का इलाज पूरी तरह से मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। क्योंकि नशे की बीमारी दिमाग़ में बदलाव के कारण होती है इसलिए दवाओं के बिना इलाज पूरा नहीं हो पाता है।

मनोरोग विभाग के एडिशनल प्रोफेसर व (एटीएफ) के नोडल ऑफिसर डॉ. विशाल धीमान ने बताया कि नशे की बीमारी एक मानसिक रोग है, मेंटल हेल्थकेयर एक्ट ( MHCA) 2017, के अनुरूप हर नशा मुक्ति केंद्र को 'मेंटल हेल्थ establishment' ( MHE) के तौर पर रजिस्टर होना अनिवार्य है, जहां इस कानून के अनुरूप मरीज को पंजीकृत किया जाएगा।

मेंटल हेल्थ केयर एक्ट (MHCA) 2017 के मुताबिक नशा मुक्ति केंद्रों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास सुचारु सुविधाओं और इलाज के लिए पर्याप्त जगह, बिस्तर, दवाएं,डॉक्टर, नर्स, काउंसलर आदि उपलब्ध हैं अथवा नहीं, यह सुनिश्चित होने की स्थिति में ही यह मेंटल हेल्थ establisment की तरह कार्य कर सकते हैं।

स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी( SMHA), उत्तराखंड द्वारा सभी नशा मुक्ति केंद्रों का विनियमन किया जाना है तथा पंजीकरण होगा। विभाग की काउंसलर तेजस्वी कंडारी व नर्स एकता चौहान द्वारा बताया गया कि नशे के रोगी सही दवाओं और इलाज से एक अच्छे व ऑथराइज्ड/रजिस्टर्ड मेंटल हेल्थ establishment में ही अपना उपचार कराएं।

एम्स में ओपीडी, दवाएं काउंसलिंग आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध

मेंटल हेल्थ कार्यक्रम के नोडल ऑफिसर डॉ. विशाल धीमान ने बताया कि (ATF) एम्स ऋषिकेश में ओपीडी, बिस्तर की सुविधाएं, दवाएं, व काउंसलिंग आदि सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं, साथ ही सभी मरीजों को सप्ताह के प्रत्येक दिन व हर समय मुफ्त रूप से और मानवीय तरीके से सभी उपलब्ध सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।

1.नशा एक आदत नहीं neuro-psychiatric डिसऑर्डर है।
2.नशे का इलाज ज्यादातर घर पर रहकर अस्पताल की ओपीडी के माध्यम से ही किया जा सकता है।

  1. नशे के रोगियों के उपचार के लिए अस्पताल और नशा मुक्ति केंद्रों को एमएचसीए 2017 कानून के अंतर्गत पंजीकृत होना अनिवार्य होता, लिहाजा रोगी अथवा रोगियों के तीमारदारों को अपने मरीज को MHCA 2017 कानून के तहत अपंजीकृत केंद्रों पर अपने मरीज का दाखिला नहीं कराना चाहिए। ऐसे केंद्र पूरी तरह से असंवैधानिक हो सकते हैं।
  2. MHCA 2017 के मुताबिक नशा मुक्ति केंद्र अस्पताल एक मेंटल हेल्थ establishment ( MHE ) कहलाएगा तथा उसे स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी (SMHA) उत्तराखंड से पंजीकरण कराना होगा।
    5.MHCA 2017 कानून के अधिनियमों के तहत ही मरीज का दाखिला व इलाज किया जाना होगा।
  3. हर मरीज को स्वैच्छिकरूप से ही दाखिल किया जाएगा तथा मानवीयतौर तरीकों से ही उपचार देना होगा।
  4. स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी उत्तराखंड द्वारा अधिकृत केंद्रों को तय किए गए बुनियादी सुविधाएं एवं स्टैंडर्ड्स को बनाए रखना होगा जैसे- साइकेट्रिस्ट,नर्स, काउंसलर आ​दि।
  5. राज्य में SMHA को मेंटल हेल्थ रिव्यू बोर्ड का गठन करना होगा, जिससे कि बेहतर उपचार सामग्री, केंद्र का नियमानुसार सुचारू संचालन व उनमें भर्ती मरीजों को मानवीय एवं उच्च मानकीकृत इलाज मुहैय्या किया जा सके।
  6. मेंटल हेल्थ रिव्यू बोर्ड नशा मुक्ति केंद्रों के कार्यों पर निगरानी कर सकता है
  7. स्टेट मेंटल हेल्थ अथॉरिटी में पंजीकरण की responsibility केंद्रों की है।
RELATED ARTICLES

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

- Advertisment -

Recent Comments

error: Content is protected !!