पी रावत
उत्तराखण्ड की सियासी मज़लिस में संजय डोभाल का इस्तक़बाल शुरू हो गया है। आज से ठीक दो महीने पहले कांग्रेस ने उनका टिकट काटकर किसी और को थमा दिया। उन्हें इसका जरा भी अंदाजा नहीं था।
पांच साल लगातार जनता के बीच रहे, लिहाजा उन्हें ही कांग्रेस के टिकट का दावेदार माना जा रहा था। लेकिन इस कोशिश को सियासत के एक स्याह रंग ने परवान नहीं चढ़ने दिया । लोगों से राय मशविरा कर डोभाल कांग्रेस से बाग़ी होकर निर्दलीय मैदान में उतर गए।
चुनाव के लिए महज एक महीना था। दोनों राष्ट्रीय दलों से उन्होंने अपने दम पर लोहा लिया। सियासतदानों की हर किलेबंदी को नेस्तनाबूद किया। आज यमुनोत्री सीट के चुनावी नतीजा उनके हक़ में गया है। जिसने उनकी और टीम की मेहनत के साथ जनता के भरोसे का एहसास करा दिया।
किसी राष्ट्रीय दल से बागी होकर चुनाव लड़ना आसान नहीं होता। जहां राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशी कैडर वोट की सहूलियत के साथ अपनी चुनावी बिसात बिछाते हैं, वहीं एक निर्दलीय प्रत्याशी का सफर शून्य से शुरू होता है। लेकिन डोभाल ने इस चुनौती को न सिर्फ स्वीकार किया बल्कि टिकट की रेस में हुई हार को जीत में तब्दील कर दिया।
दरअसल, एक तरह से डोभाल की जीत उस जनता की जीत है, जो किसी प्रलोभन में नहीं आई। पांच सालों तक उन्होंने संजय डोभाल को ईमानदारी से अपने बीच खड़ा पाया। स्वभाव से सरल सहज और विनम्र यह प्रत्याशी यमनुोत्री विधान सभा के हर घर गांव तक पहुंचा।
कुछ लोग इसे सहानुभूति में मिली जीत मान सकते हैं। लेकिन यहां मामला अलग है, संजय डोभाल बहुत कम अंतर से महज एक चुनाव हारे थे। उन्हें सहानुभूति जनता के बीच काम करने की वजह से मिली, ना कि किसी अन्य वजह से। संजय नई पीढ़ी के नेता हैं और आने वाला कल उनके सामने हैं। बधाई।