देहरादून। भारत इस वर्ष अपना 36वां नेत्रदान पखवाड़ा मना रहा है। नेत्रदान को महादान कहा गया है। नेत्रदान से जुड़े तमाम तथ्यों पर व इसकी आवश्यकता पर इन दिनों देश भर में नेत्रदान सम्बन्धी जन-जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं।
देहरादून नेत्र रोग सोसायटी व उत्तराखंड स्टेट ऑप्थेलमोलॉजिकल सोसाइटी के अकादमिक अध्यक्ष डॉ सौरभ लूथरा ने बताया, “नेशनल ब्लाइंडनेस कंट्रोल प्रोग्राम के तहत नेत्रदान पखवाड़े को मनाने का मुख्य उद्देश्य नेत्रदान के महत्व के बारे में जन जागरूकता पैदा करना और लोगों को मृत्यु के बाद नेत्रदान के लिए प्रेरित करना है।”
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में उत्तर भारत के नेत्र चिकित्सा में सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक दृष्टि आई इंस्टिट्यूट के चिकित्सा निदेशक डॉ गौरव लूथरा ने नेत्रदान के महत्व के बारे में बताते हुए कहा, “भारत में अंधापन एक बहुत बड़ी समस्या है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया की एक तिहाई नेत्रहीन आबादी भारत में है। ऐसे में नेत्रदान ही कॉर्नियल ब्लाइंडनेस के उन्मूलन में सहायक सिद्ध हो सकता है।”
नेत्रदान कौन कर सकता है, इस पर कॉर्निया विशेषज्ञ डॉ रुचिका पटनायक ने जानकारी देते हुए कहा– “कोई भी अपनी आंखों का दान कर सकता है। इस मामले में आयु और लिंग को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है। यहां तक कि जो लोग चश्मा पहनते हैं और अतीत में मोतियाबिंद सर्जरी करते हैं, वे भी दान कर सकते हैं। हालाँकि संचारी रोग – जैसे एड्स, हेपेटाइटिस बी इत्यादि – से पीड़ित व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकता है।“
डॉ रुचिका ने हाल ही में दृष्टि आई इंस्टीट्यूट में कई नेत्रहीनों में कॉर्निया का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि – “चूंकि नेत्रदान के लिए परिवार की सहमति अनिवार्य है, इसलिए यह आवश्यक है कि कोई भी व्यक्ति नेत्रदान करने के अपने निर्णय के बारे में परिवार को सूचित करे।”
“आम तौर पर लोगों में भ्रान्ति होती है कि यदि किसी ने जीते-जी नेत्रदान नहीं किया है तो उनकी मृत्यु के बाद उनके नेत्रदान नहीं किये जा सकते, लेकिन ऐसा नहीं है।” डॉ गौरव ने इस सन्दर्भ में बताया– “नेत्रदान के लिए पंजीकरण न करने पर भी किसी व्यक्ति के परिवार जन स्वेच्छा से उनके नेत्र दान कर सकते हैं।”
उन्होंने लोगों से आगे आने और नेत्रदान करने का संकल्प लेने का आग्रह किया और कहा– “यह बहुत जरूरी है कि हमारे देश में नेत्रदान को एक परंपरा के रूप में अपनाया जाए ताकि अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकें।”
नेत्रदान से जुड़े विशेष तथ्य
- कॉर्निया दान जीवनरक्षक और जीवनदायिनी हो सकता है।
- नेत्रदान मरणोपरांत ही किया जा सकता है।
- दाता का सिर्फ कॉर्निया ही लिया जाता है। इस प्रक्रिया में मात्र 15-20 मिनट ही लगते हैं।
- कॉर्निया लेने के बाद मृत व्यक्ति का चेहरा विकृत नहीं होता है। कॉर्निया लेने गयी टीम मृत व्यक्ति के सम्मान व प्रियजनों की भावना का पूरा ध्यान रखती है।
- एड्स, हेपेटाइटिस, ल्यूकेमिया आदि जैसे रोगों से पीड़ित लोगों को छोड़ कर हर कोई नेत्रदान कर सकता है।
- एक नेत्रदान से कम से कम दो व्यक्तियों को रौशनी दी जा सकती है।
- नेत्रदान मौत से छह घंटे में होना चाहिए।
- नेत्रदान के लिए परिवार की सहमति अनिवार्य है।