Home स्वास्थ्य एम्स ऋषिकेश: नवजात शिशुओं की देखभाल, शिशु मृत्युदर रोकने को लेकर कार्यशाला...

एम्स ऋषिकेश: नवजात शिशुओं की देखभाल, शिशु मृत्युदर रोकने को लेकर कार्यशाला शुरू

0
1027

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, एम्स ऋषिकेश में सीएफएम, नियोनेटोलॉजी विभाग व राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन उत्तराखंड के संयुक्त तत्वावधान में चार दिवसीय कार्यशाला विधिवत शुरू गई।

कार्यशाला के माध्यम से प्रशिक्षणार्थियों को राज्य में नवजात शिशुओं की देखभाल के साथ ही शिशु मृत्युदर रोकने के बाबत आवश्यक प्रशिक्षण दिया जाएगा। संस्थान में सामुदायिक एवं परिवार चिकित्सा विभाग, नवजात शिशु विभाग की ओर से एनएचएम के सहयोग से फेसिलिटी बेस्ड न्यूबौर्न केयर प्रशिक्षण कार्यशाला का मुख्यअतिथि डीन एकेडमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने विधिवत शुभारंभ किया। प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रतिभागी स्वास्थ्य कर्मचारियों को नवजात शिशु के सही पुनर्जीवन रिससिटेशन को लेकर प्रशिक्षित किया जाएगा।

इस अवसर पर बताया गया कि शिशु के जन्म के बाद शुरुआती एक घंटा शिशु के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। लगभग 10 प्रतिशत नवजात शिशुओं को रिससिटेशन की जरुरत होती है। प्रशिक्षणार्थियों को बताया गया कि जन्म के समय लगभग 25 फीसदी नवजात शिशुओं में सांस नहीं ले पाने की तकलीफ होती है।

डीन एकेडमिक प्रोफेसर मनोज गुप्ता ने बताया कि एम्स संस्थान में नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं। साथ ही राज्य सरकार के अस्पतालों में कार्यरत नर्सिंग स्टाफ को भी संस्थान द्वारा नवजात की बेहतर देखभाल के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि भविष्य में संस्थान के स्तर पर इस ट्रेनिंग को और अधिक बेहतर बनाया जाएगा।

उन्होंने बताया कि इस तरह के उच्चस्तरीय प्रशिक्षण के माध्यम से हम स्वास्थ्यकर्मियों को दक्षता प्रदान करते हैं जिससे वह अपने कार्यक्षेत्र में इससे जुड़े मामलों में व्यवहारिक ज्ञान में बढ़ोत्तरी कर सकें। डीन एकेडमिक ने बताया कि संस्थान आगे भी स्वास्थ्यकर्मियों को दक्ष बनाने के लिए इस तरह की महत्वपूर्ण ट्रेनिंग्स को जारी रखेगा। जिससे अधिकाधिक गुणवत्तापरक प्रशिक्षण दिया जा सके।

इस अवसर पर सीएफएम विभागाध्यक्ष प्रो. वर्तिका सक्सैना ने बताया कि उत्तराखंड में हरिद्वार व देहरादून क्षेत्र में नवजात शिशुओं की सर्वाधिक मृत्युदर है, उन्होंने बताया कि छोटे अस्पतालों में नवजात के पैदा होने के समय किसी भी तरह की समस्या आने पर ऐसे शिशुओं को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में रेफर किया जाता है। जिसमें अनावश्यक समय व्यय हो जाता है, कई दफा नवजात को शिफ्ट करने के दौरान समय पर उचित उपचार नहीं मिलने से उनकी मृत्यु के मामले बढ़ जाते जाते हैं।

इसकी एक अहम वजह उन्होंने नवजात को एक से दूसरे अस्पताल पहुंचाने में परिवहन संबंधी दिक्कतों को भी माना। लिहाजा प्रत्येक अस्पताल में डिलीवरी के समय आने वाली समस्याओं से निपटने के लिए दक्ष नर्सिंग स्टाफ होना चाहिए इस लिहाज से उन्होंने इस कार्यशाला को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया।

संस्थान के नियोनेटोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रो. श्रीपर्णा बासू ने बताया कि यह प्रशिक्षण हम लोग लंबे अरसे से राज्य के स्वास्थ्य कर्मचारियों को देते रहे हैं, महत्वपूर्ण ट्रेनिंग होने के कारण ही एम्स के पास प्रशिक्षणार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है। उन्होंने बताया कि इस प्रशिक्षण के उपरांत प्रशिक्षित नर्सिंग ऑफिसर्स अपने कार्यक्षेत्र में जाकर नवजात शिशुओं की और अधिक बेहतर देखभाल कर पाते हैं।

जिससे वह नवजात शिशुओं को होने वाली परेशानियों जैसे निमोनिया, सेप्सिस, डायरिया आदि से बचाव किया जा सके। कार्यशाला के आयोजन में प्रोग्राम समन्वयक डा. मीनाक्षी खापरे, ट्रेनिंग को-ऑर्डिनेटर डा. सुमन चौरसिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इस अवसर पर राजकीय चिकित्सालय ऋषिकेश, श्रीनगर, देहरादून, हरिद्वार, रुद्रपुर, गोपेश्वर आदि राजकीय चिकित्सालयों के नर्सिंग ऑफिसर्स शामिल हो रहे हैं।

No comments

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

error: Content is protected !!