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Wednesday, April 24, 2024
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सुरकण्डा मंदिर को रोपवे से जोड़ने से धार्मिक व साहसिक पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

जगत सागर बिष्ट

देवभूमि के टिहरी जनपद में स्थित जौनपुर के सुरकुट पर्वत पर प्रसिद्ध मां सुरकंडा देवी का मंदिर है। यह मंदिर मां दुर्गा देवी को समर्पित है। जो कि नौ देवी के रूपों में से एक है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठ में से है । इस मंदिर में माँ काली की प्रतिमा स्थापित है।

केदार खंड व स्कंद पुराण में इस स्थान को इंद्र की तपोस्थली माना गया है। यही अराधना कर इंद्र का खोया हुआ साम्राज्य प्राप्त हुआ था। यह स्थान समुद्र तल से करीब तीन हजार मीटर ऊंचाई पर है, इस कारण यहां से बद्री, केदार, गंगोत्री और यमनोत्री चारो धामों की पहाडियां नजर आती है। इसी परिसर में भगवान शिव व हनुभान जी को समर्पित मंदिर भी है।

ऐसी मान्यता है कि नव रात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर इस मंदिर में देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है अब इस मंदिर को रोपवें से जोडा गया है। जिससे यहां श्रद्धालुओ की संख्या में भारी इजाफा देखने को मिल रहा है। पहले बच्चों व बुजुर्ग श्रद्धालुओ को मंदिर तक पहुंचने में खासी परेशानीयों का सामना करना पड़ता था। घोड़ों की भारी भरकम रकम दे कर श्रद्धालु मंदिर पहुँचते थे, लेकिन रोपवे के बाद अब मंदिर जाने वाले श्रद्धालुओ में खुशी का आलम देखने को मिल रहा है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किए यज्ञा कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर ने देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रमाण्ड के चक्कर लगा रहे थे, इसी दैरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 51 भाग में विभाजित कर दिया था, जिससे सती के सर का भाग इस स्थल पर गिरा था, इसलिए यह स्थान श्री सुरकण्डा देवी मंदिर के नाम से जाने जाने लगा।

सती के शरीर के भाग जिन स्थानों पर गिरे व आज भी वे स्थान शक्ति पीठ के नामों से जाने जाते है। सुरकंडा मंदिर के रोपवें की बात करे तो, रोपवें के बनने से जहां श्रद्धालुओ की संख्या में इजाफा हुआ, वही क्षेत्र में धार्मिक व साहसिक पर्यटन की सम्भावनाओं की भी आश जगी है।

इस रोपवें का निर्माण पर्वतमाला योजना के तहत किया गया। यह रोपवें 502 मीटर लंबा है, इसे 32 करोड़ से ज्यादा लागत से विकसित किया गया है। इस रोपवें में 16 कैविन है। इस रोपवें से हर घण्टे 500 यात्रीयों को मंदिर तक पहुँचाया जा सकता है। धार्मिक पर्यटन व साहसिक पर्यटन के क्षेत्र में यह रोपवें नीव का पत्थर साबित होगा, जिससे क्षेत्र में रोजगार की सम्भावनाओं को बल मिलेगा।

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