उत्तराखण्ड में सीबीएसई से संचालित स्कूलों के सामने बड़ी असमंजस की स्थिति आ खड़ी हो गई है। उनके सामने संकट यह खड़ा हो गया है कि वह राज्य सरकार की मानें या फिर सीबीएसई की। राज्य सरकार और सीबीएसई बोर्ड के अलग-अलग आदेशों के चलते सभी स्कूल संचालक परेशानी में हैं। इस प्रकरण में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और सीबीएसई से दो सप्ताह के भीतर जवाब तलब किया है।
इस मामले में हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि कुमार मलिमथ एवं न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। ऊधमसिंह नगर एसोसिएशन ऑफ इंडिपेंडेंट स्कूल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 22 जून 2020 को आदेश जारी कर कहा था कि लॉकडाउन में निजी स्कूल किसी भी बच्चे का नाम स्कूल से नहीं काटेंगे और उनसे ट्यूशन फीस के अलावा अन्य किसी भी प्रकार को कोई शुल्क नहीं लेंगे।
राज्य सरकार के इस आदेश को निजी स्कूलों ने स्वीकार करते हुए उस पर अमल किया। इस बीच बीते एक सितंबर को सीबीएसई ने सभी निजी स्कूलों को नोटिस जारी कर कहा कि बोर्ड से संचालित सभी स्कूल 10 हजार रुपये स्पोर्ट्स शुल्क, 10 हजार रुपये टीचर ट्रेनिंग शुल्क और प्रति बच्चा 300 रुपये पंजीकरण शुल्क बोर्ड को 4 नवंबर से पहले भुगतान कर दें। साथ ही इस नोटिस में यह भी कहा गया कि अगर 4 नवंबर तक भुगतान नहीं किया गया तो प्रति बच्चे के हिसाब से 2000 रुपये पेनाल्टी देय होगी। सीबीएसई के इस नोटिस को एसोसिएशन ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
एसोसिएशन का कहना है स्कूल न तो किसी बच्चे का पंजीकरण रद्द कर सकते हैं और ना ही उनसे ट्यूशन शुल्क के अलावा कोई अन्य शुल्क ले सकते हैं। याचिका में सीबीएसई की ओर से डाले जा रहे इस दबाव पर रोक लगाने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया कि इस समय न तो टीचर्स की ट्रेनिंग हो रही है और ना ही कोई खेल हो रहे हैं।
एसोसिएशन का कहना था कि सीबीएसई से संचालित स्कूल बोर्ड और राज्य सरकार के आदेशों के बीच दुविधा में हैं। एसोसिएशन का कहना है कि यदि स्कूल बच्चों से उक्त मदों में फीस लेते हैं तो उनके स्कूलों का पंजीकरण रद्द हो सकता है। ऐसे में वह करें तो करें क्या। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और सीबीएसई को दो सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।